मोटरसाइकिल पर सवार दो आदमी साइकिल से जा रही लड़की को ओवरटेक करते हैं और उनमें से एक लड़की का दुपट्टा खींच लेता है. तुरंत वह अपना संतुलन खो देती है, उसकी साइकिल दाहिनी ओर घूम जाती है और पीछे से आ रही दूसरी मोटरसाइकिल से टकरा जाती है. जैसे ही वह सड़क पर गिरती है, दूसरी दिशा से आ रही तीसरी मोटरसाइकिल 17 वर्षीय लड़की को कुचल देती है.
'ईव टीजिंग' नहीं, कहा जाना चाहिए 'सड़क पर यौन उत्पीड़न'
"जिस पल मैंने अपनी बेटी को देखा, मुझे पता था कि वह मर चुकी है," उसके पिता सभाजीत वर्मा ने कहा, "कोई अंतिम शब्द नहीं, कोई अलविदा नहीं."
उन्होंने कहा, अपनी मौत से दो दिन पहले उनकी बेटी ने बताया था कि कुछ लड़के स्कूल के बाहर उसे और दूसरी लड़कियों को परेशान कर रहे थे.
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के अंबेडकर नगर जिले की इस घटना ने सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (sexual harrassment at public places) के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है. इस तरह की घटनाएं लगभग हर शहर, हर जिले की सच्चाई है, जिसे अक्सर "ईव टीजिंग" कहकर टाल दिया जाता है. अक्सर लडकियां या महिलाएं इसकी शिकायत भी दर्ज नहीं करवाती.
कुछ महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने स्थानीय प्रेस द्वारा केस की रिपोर्टिंग के लिए "ईव टीजिंग" फ्रेज के इस्तेमाल पर सवाल उठाये. हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "ईव टीजिंग" की बजाय "सड़क पर यौन उत्पीड़न" कहा जाना चाहिए (sexual harassment instead of eve teasing).
बेहद कम रिपोर्ट किया जाने वाला अपराध है सड़क पर यौन उत्पीड़न
सार्वजनिक स्थानों को महिलाओं के लिए सुरक्षित और इन्क्लूसिव बनाने के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था सेफ्टीपिन की सह-संस्थापक कल्पना विश्वनाथ का कहना है कि यह शब्द ऐसा लगता है जैसे बस थोड़ा-सा चिढ़ाया या परेशान किया गया हो.
वह कहती हैं, "यह एक सामान्य बॉलीवुड कहावत है कि नायक एक महिला का पीछा करता है और वह उसका पीछा करना पसंद करती है. लेकिन यह अपराध है, यह हिंसक है, और इसे छेड़छाड़ कहकर हिंसा के प्रभाव को कम नहीं समझा जा सकता."
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कल्पना विश्वनाथ कहती हैं, "सड़क पर उत्पीड़न एक बेहद कम रिपोर्ट किया जाने वाला अपराध है क्योंकि ज्यादातर महिलाएं पुलिस के पास नहीं जाती जब कोई उन्हें छूता है, उनके साथ छेड़छाड़ करता है या भद्दी टिप्पणियां करता है. इसके अलावा, विशेष रूप से बहुत भीड़-भाड़ वाले इलाके में, एक महिला के लिए अपराधी को पहचानना भी मुश्किल हो सकता है."
"मीडिया में एक बेहतर संदेश प्रणाली का होना ज़रूरी"
वह कहती हैं "अंबेडकर नगर वाली घटना में अगर लड़की मरी नहीं होती, अगर वह गिरने के बाद उठती, खुद को झाड़ती और चली जाती, तो कोई भी इस घटना के बारे में बात नहीं करता."
जेंडर एक्टिविस्ट्स का मानना है कि लड़कों को संवेदनशीलता और बेहतर व्यवहार सिखाकर इस अपराध पर काबू पाया जा सकता है (sensitizing society to stop crimes against women). विश्वनाथ कहती हैं, "यह एक लॉन्ग-टर्म प्रोसेस है. मीडिया में एक बेहतर संदेश प्रणाली का होना ज़रूरी है जो इस समय लड़कियों के खिलाफ है."
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पुलिस और जनता का संवेदनशील होना भी है ज़रूरी
लोगों को यह समझने की ज़रूरत है कि एक्सेप्टेबल व्यवहार क्या है, पुलिस को संवेदनशील होना होगा ताकि वे महिलाओं की शिकायतों को गंभीरता से लें. चूंकि पुलिस हर समय हर जगह नहीं रह सकती है, इसलिए जनता को भी संवेदनशील होना होगा.
सड़क पर यौन उत्पीड़न की घटनाएं महिलाओं की सुरक्षा पर ऐसा कलंक है जो उनसे अपने सपने पूरे करने की आज़ादी को छीनता है (sexual harassment cases on streets).
"लड़के तो लड़के हैं, उन्हें कौन समझाए" अक्सर ये सुनने को मिलता है. पर हम लड़कों को इतनी आसानी से अपराधी नहीं बनने दे सकते.