राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में लापता होने वाली महिलाओं और लड़कियों की सबसे ज्यादा संख्या मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) और महाराष्ट्र (Maharashtra) से है.
NCRB के अनुसार, दोनों राज्यों में वर्ष 2019, 2020 और 2021 में दूसरे सभी राज्यों की तुलना में लड़कियों और महिलाओं के लापता होने के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज किए गए (NCRB releases data on missing women).
गृह मंत्रालय (MHA) ने एक बयान में कहा, अकेले 2021 में, देश भर में 18 साल से ज़्यादा उम्र की 375,058 महिलाओं के लापता होने की सूचना मिली, साथ ही 18 साल से कम उम्र की करीब 90,113 लड़कियां भी लापता थीं.
सरकार ने महिला सुरक्षा के लिए उठाये कईं कदम
महाराष्ट्र सरकार ने महिला सुरक्षा (women safety) के लिए कदम उठाते हुए महिला सेल, महिला पुलिस कक्ष (महिला हेल्प डेस्क पुलिस स्टेशन स्तर), महिला सुरक्षा समिति, मानव तस्करी विरोधी इकाई और महिलाओं के खिलाफ अपराध की जांच इकाइयों की शुरुआत की.
केंद्र ने यौन अपराधों (sexual assault) के खिलाफ प्रभावी रोकथाम के लिए आपराधिक कानून (संशोधन), अधिनियम 2013 को लागू करने सहित देश भर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई पहल की हैं.
आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 में 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार के लिए मौत की सजा सहित सख्त दंडात्मक प्रावधान पेश किए गए. स्मार्ट पुलिसिंग और सुरक्षा प्रबंधन के लिए तकनीक का इस्तेमाल करते हुए आठ शहरों में सुरक्षित शहर परियोजनाएं स्वीकृत की गईं. गृह मंत्रालय (एमएचए) ने देश भर में यौन अपराधियों पर नज़र रखने के लिए एक साइबर-अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (Cyber-crime Reporting Portal) और 'यौन अपराधियों पर राष्ट्रीय डेटाबेस' (NDSO) लॉन्च किया.
गृह मंत्रालय ने देश के सभी जिलों में महिला सहायता डेस्क और मानव तस्करी विरोधी इकाइयों की स्थापना के लिए परियोजनाओं को मंजूरी दी. इसके अलावा, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने हिंसा और संकट से जूझ रही महिलाओं को सहायता देने के लिए 733 वन-स्टॉप सेंटर (One Stop Center) शुरू किए.
पर क्या ये कानून काफी हैं?
पर क्या ये कानून काफी हैं? अधिनियमों, योजनाओं, और भाषणों के बीच मानसिकता में बदलाव लाने की बात कहीं खो जाती है. भारत से लेकर UN तक की रिपोर्ट बता रही है कि बदलाव की शुरुआत ज़मीनी स्तर से करनी होगी. और इस बदलाव का सफ़र न्यायालयों, सरकारी दफ्तरों, या पुलिस थानों से नहीं, बल्कि हमारे घरों से शुरू होगा. बेटा और बेटी में फर्क, घर की महिलाओं को अधिकार न मिलना, गलत होता देख चुप रह जाना, महिलाओं में जागरूकता की कमी... इन आदतों को छोड़ अपनी सोच को बदलना होगा. तभी कानून जीत सकेगा.