महिलाओं के सफल प्रोजेक्ट पर सरकार फेल !

जिले में सिर्फ एक फूलमती नहीं बल्कि ऐसी सैंकड़ों महिलाएं हैं जिनका जीना और घर से निकलना मुश्किल हो गया. यह वे ही महिलाएं हैं, जिनकी मेहनत और काम के दम पर सरकार और प्रशासन मिसाल देता था. 

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Image Credits: Mahila Chetna Manch

महिलाओं के सफल प्रोजेक्ट पर सरकार फेल !

मध्यप्रदेश (MP) के डिंडोरी (Dindori) जिले की बैगा आदिवासी (Baiga Tribe) महिला फूलमती टेकाम की नींद उडी हुई है. गांव की उद्यमी का दर्जा हासिल करने के बाद सरकार की यह योजना ही उलटी पड़ गई. किसी समय 35 से 40 हजार रुपए महीना कमाने वाली फूलमती पर अब 60 लाख रुपए की उधारी चढ़ गई. साहूकारों ने फूलमती का जीना मुश्किल कर दिया. इस जिले में सिर्फ एक फूलमती नहीं बल्कि ऐसी सैंकड़ों महिलाएं हैं जिनका जीना और घर से निकलना मुश्किल हो गया. यह वे ही महिलाएं हैं, जिनकी मेहनत और काम के दम पर सरकार और प्रशासन मिसाल देता था. ये सब महिलाएं जिले के स्वयं सहायता समूह  से जुड़ीं हुईं हैं.

शासन के आगे बेबस हुईं महिलाएं 

दरअसल, सरकार ने आदिवासी समुदाय की सबसे कमजोर बैगा समुदाय की महिलाओं को  आर्थिक मजबूती और आत्मनिर्भर बनाने के लिए योजना लागू की. इसे आदिवासी बहुल डिंडोरी (Dindori) जिले का पायलट प्रोजेक्ट (Pilot Project) बनाया. महिलाओं के बनाए संगठन को फायदा तक हुआ. उस चलती हुई सफल योजना को बिना सोचे-समझे दूसरी योजना में जोड़ने का रिज़ल्ट ये रहा कि महिलाओं के बने चार संघठन बंद हो गए या कुछ बंद होने के कगार पर हैं. ये महिलाएं आर्थिक रूप से बर्बाद हो गईं.चौंकाने वाली बात यह है कि इन संघठन का सरकार के पास लगभग साढ़े 81 लाख रुपए लेनदारी है. जिसके लिए ये महिलाएं चक्कर काट रहीं.    

2 करोड़ के टर्नओवर का बना दिया रिकॉर्ड 

सरकार ने बैगा आदिवासी समुदाय की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 2007-08 में तेजस्विनी महासंघ (Tejasvini Mahasangh) बनाए. 2013 का साल आते-आते-आते जिले के सातों ब्लॉक में 9 संघ के साथ 2470 स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) बने. इन समूह में 31 हजार से ज्यादा महिलाओं को काम मिलना शुरू हुआ. 2023 की सरकारी रिपोट के आधार पर  इन महिलाओं के संघठन को जिले की 913 आंगनबाड़ियों में लगभग पचास हजार बच्चों को बाजरा से तैयार कोदो-कुटकी (Millets) जैसे पौष्टिक नाश्ता सप्लाई किया. इसका टर्नओवर दो करोड़ तक पहुंचा. यह रिकॉर्ड बना.

तेजस्विनी संघ गाड़ासारा की अध्यक्ष रसीला यादव बताती है- "हमारे जिले में आंगनबाड़ियों में नाश्ता सप्लाई के आलावा गोंडी पेंटिंग (Gaundi Panting), सैनेटरी पेड (Sanitary Pad) निर्माण, प्राइमरी स्कूल के बच्चों की यूनिफॉर्म भी बनाई, जिससे महिलाओं की स्थिति अच्छी हुई थी. अब 17 लाख का कर्जा है.इसी ब्लॉक की दो यूनिट बंद हो गई." 

योजनाओं की विसंगति से फंसा पेंच 

स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) पर मुसीबत की वजह 2019 में राष्ट्रीय आजीविका मिशन(NRLM) में इस योजना को मिला दिया. इसके काम और पैसा फंस गया. पूरे जिले में ऐसे संगठनों को आंगनबाड़ी में मिलेट्स (Millets) नाश्ता सप्लाई करने और ऐसे ही दूसरे काम के लिए साढ़े 81 लाख रुपए लेना थे.इस योजना को आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) में मर्ज़ करते ही पहले मिलने वाली सुविधा में वार्षिक अनुदान. फाइनेंशियल सपोर्ट जैसी कई व्यवस्थाएं छीन गईं. हालत यह हुई कि इन संघ के पदाधिकारियों ने भोपाल मुख्यालय पर महिला एवं बाल विकास निदेशालय के सामने प्रदर्शन तक किया. फिलहाल नतीजा कुछ नहीं निकला.       

तेजस्विनी मालसुता महासंघ,गोरखपुर की सचिव फूलमती टेकाम बताती है- "हम बाजार से कच्चा माल खरीद कर नाश्ता तैयार करते थे. हमारे संघ का 12 लाख का भुगतान रुका. हमने बाजार से 12 लाख रुपए का कर्जा किया. यह ब्याज सहित 17 लाख हो गया.साहूकार परेशान कर रहे." 

कब तक शर्मिंदा ! 

सरकार महिलाओं को मजबूत बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह (SHG) बनवा रही.इसमें पुराने संघ खत्म हो गए. जिले के मेहंदवानी, कंजारिया, बाजर और शाहपुर के संघों ने दम तोड़ दिया. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) में चाहे नए समूह और उनसे जुड़ी महिलाओं को योजनाओं का लाभ मिलने का दावा सरकार करे, लेकिन इसी शासन की एक योजना में अदूरदर्शिता ने जहां उद्यमी महिलाओं को साहूकारों के सामने मुंह छुपाना पड़ रहा, वहीं विभागों से जुड़े अफसर फाइलों को धूल चटा रहे.अफसरों के इस लेटलतीफी के कारण उन महिलाओं को साहूकारों के सामने शर्मिंदा होना पड़ रहा, जिन्होंने अपनी मेहनत से योजनाओं को सफल बना कर सरकार और अफसरों की नाक ऊंचीं की थी. 

 

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