Workspace में समान अधिकारों के लिए महिलाओं की लड़ाई आज भी जारी!

World Economic Forum के 2023 के Global Gender Gap Index (GGG) में भारत को 146 राष्ट्रों में से 127वें स्थान पर रखा गया है. World Inequality Report 2022 दिखाती है कि भारत में पुरुषों के पास श्रम आय का 82% हिस्सा है, जबकि महिलाओं की आय केवल 18% है.

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विधि जैन
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Equal Working Rights for Women

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कल्पना कीजिए एक ऐसी working space, जहां हर कामकाजी महिला को उसकी योग्यता और क्षमता के अनुसार समान अवसर और सम्मान मिले; जहां वेतन में कोई भेदभाव ना हो और हर महिला को उसके काम के लिए उचित मेहनताना मिले. दुर्भाग्यवश, वास्तविकता इस कल्पना से काफी दूर है.

भारत में, महिलाओं को workplace पर समान अधिकार प्राप्त करने की दिशा में अभी भी कई चुनौतियां मौजूद हैं. इनमें वेतन का अंतर, working hours में असमानता, लीडरशिप रोल्स से दूरी, कानूनी अधिकारों के प्रति गैर ज़िम्मेदारी और करियर में उन्नति के अवसरों में भेदभाव मुख्या रूप से देखने को मिलते हैं.

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समान अधिकारों की कमी एक सामाजिक समस्या

भारत में महिलाओं के समान कार्य अधिकारों (Equal Work Rights) की स्थिति आज भी एक महत्वपूर्ण चुनौती है. यह विषय सिर्फ कानूनी उपायों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक समस्या के रूप में भी उभरता है. विश्व बैंक के आकलन के अनुसार, दुनिया की सभी राष्ट्रों में, यहां तक कि सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं में भी, एक महत्वपूर्ण लैंगिक अंतर (gender gap) मौजूद है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं को पुरुषों के समान रोज़गार के अवसर प्राप्त ही नहीं होते हैं और उनके पास कानूनी अधिकार भी कम होते हैं.

हालांकि, केवल कानूनी उपायों से इस समस्या का पूरी तरह समाधान नहीं हो सकता. सामाजिक मान्यताओं और रूढ़िवाद के कारण, महिलाओं को अक्सर उच्च पदों या बेहतर वेतन वाली नौकरियों में कम ही प्रतिनिधित्व का मौका मिलता है. इसके अलावा, घरेलू जिम्मेदारियों और जॉब की मांगों के बीच संतुलन बनाने में भी महिलाएं अधिक दबाव का सामना करना पड़ता हैं.

इस संघर्ष के हैं कई कारण

महिलाओं द्वारा अपने हक़ के लिए लड़ाई आज भी जारी हैं जिसके लिए कई पहलू ज़िम्मेदार हैं.

  • सामाजिक मान्यताएं और लिंग भेदभाव: भारतीय समाज में प्रचलित लिंग आधारित भूमिकाएं महिलाओं को परंपरागत रूप से निचले स्थान पर रखती हैं. इसके कारण महिलाओं को उच्च पदों पर पहुंचने और उनके व्यावसायिक कौशल को मान्यता देने में कठिनाई होती है.
  • वेतन में असमानता: महिलाओं को अक्सर पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है, यहां तक कि जब वे समान काम करती हैं. इस वेतन अंतर का मुख्य कारण लिंग आधारित रूढ़िवाद सोच है. कई बार तो इस बात को यह कहकर ताल दिया जाता है कि महिलाओं को कमाने की ख़ास ज़रूरत नहीं होती. और अगर कहीं महिला एक पुरुष से ज़्यादा कमा लेती है तो वह बात पुरुष के "ego" को ठेस पहुंचाती है.
  • कार्य और घर की जिम्मेदारियों का दोहरा बोझ: महिलाओं से अक्सर घरेलू जिम्मेदारियों और ऑफिस के कामों दोनों की अपेक्षा की जाती है. इससे उनके करियर के विकास में बाधा आती है. समाज को यह समझना बेहद ज़रूरी है कि अगर कोई महिला विवाहित है और उसका कोई बच्चा भी है, तो यह पति और पत्नी दोनों की ज़िम्मेदारी होती है कि वह मिलकर चीज़ें संभालें ना कि किसी एक पर सारा बोझ झोंक दिया जाए.
  • पेशेवर विकास के अवसरों में भेदभाव: महिलाओं को अक्सर प्रमोशन और व्यावसायिक विकास के समान अवसर नहीं दिए जाते हैं, जो उन्हें पुरुष सहकर्मियों के समान पदों तक पहुंचने से रोकता है. इससे होता यह है कि पुरुषों के लिए कभी किसी महिला का आगे आना एक चौकाने वाली बात बन जाती है और वहां शायद उनकी ईर्ष्या बढ़ जाती है.
  • कानूनी और नीतिगत समर्थन की कमी: भारत में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून मौजूद ज़रूर हैं, लेकिन इन कानूनों का पालन अक्सर कमजोर पड़ जाता है. इससे महिलाओं को उनके अधिकारों का पूरा लाभ उठाने में कठिनाई होती है.
  • यौन उत्पीड़न और कार्यस्थल पर असुरक्षा: महिलाओं को कार्यस्थल पर अक्सर यौन उत्पीड़न और अन्य प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है, जो उनकी नौकरी में बने रहने और प्रोफेशनल तरक्की की संभावनाओं को प्रभावित करता है. आज इससे निपटने के लिए कई क़ानून और कदम उठाये जा रहे हैं परन्तु क्या यह कदम केवल एक कागज़ पर लिखे शब्दों से आगे बढ़ पाएं हैं?

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महिलाओं को समान अवसर ना मिलना है चिंता का विषय

World Economic Forum के 2023 के Global Gender Gap Index (GGG) में भारत को 146 राष्ट्रों में से 127वें स्थान पर रखा गया है. World Inequality Report 2022 दिखाती है कि भारत में पुरुषों के पास श्रम आय का 82% हिस्सा है, जबकि महिलाओं की आय केवल 18% है.

ये आंकड़े भारत में लिंग आधारित असमानताओं (gender based differences) की गहराई को उजागर करते हैं. इस प्रकार के अंतराल से महिलाओं के समाज में और अधिक सक्रिय और सफल होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं. इसके निवारण के लिए, नीति निर्माताओं और समाज के सभी वर्गों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि लिंग आधारित असमानताओं को कम किया जा सके और महिलाओं को उनके योग्य स्थान दिलाया जा सके. इसके लिए शिक्षा, रोजगार, और कानूनी अधिकारों में सुधार, साथ ही साथ सामाजिक जागरूकता और बदलाव आवश्यक हैं.

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भारत में महिलाओं के समान कार्य अधिकारों की स्थिति विश्व बैंक (World Bank) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की रिपोर्टों में बार-बार चिंताजनक रूप से सामने आती है. भारत सरकार ने भी महिलाओं के कार्यस्थल पर समानता सुनिश्चित करने के लिए कई कानूनी उपाय किए हैं. उदाहरण के लिए, मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 और इसके संशोधनों ने महिलाओं को अधिक समर्थन और सुरक्षा प्रदान की है.

इसी तरह, यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून, 2013 महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए लागू किया गया है. मगर आज भी यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर भेदभाव एक प्रमुख समस्या है, जो उनके आर्थिक विकास और सामाजिक समानता में बाधक है.

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