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नर्सरी में गाइडेंस लेते हुए उषा व अन्य सदस्य -Image Ravivar
मध्य प्रदेश के ग्वालियर ज़िले में छोटे गुमनाम गांव निकोड़ी की रहने वाली उषा रावत की यह कहानी है. शादी के बाद से ही उषा घर संभालने में व्यस्त हो गई.पति महेश रावत मजदूरी और खेती से पालन-पोषण बड़ी मुश्किल से करते. उषा रावत बताती है- "गांव में कोई अलग काम नहीं था. self help group से जुड़ कर हमने भी समाधि SHG बनाया.और पंचायत से लगाकर बैंक की योजनाओं को समझा. मैंने नर्सरी के लिए ट्रेनिंग ली और हमें कमाई का साधन मिल गया."
डेयरी प्रोजेक्ट से संवर गई ज़िंदगी
नर्सरी ट्रेनिंग के बाद Ajeevika Mission के अधिकारियों ने उषा रावत को डेयरी प्रोजेक्ट के लिए प्रोत्साहित किया.ट्रेनिंग दिलवाई और लोन सुविधा से प्रोजेक्ट शुरू करवाया.
उषा रावत बताती है-"हमने छायादार और फलदार पौधे तैयार किए. पौधे बेच कर कमाई शुरू हुई. हमें हिम्मत आ गई. village organizations गठन के बाद कुटुंब CLF चिनोर में हमारा समूह शामिल हुआ. और लगातार सक्रिय रहने के कारण मुझे साढ़े सात लाख रुपए का लोन मिल गया. हमने 8 भैंस और अन्य मवेशी ख़रीदे. हमें डेयरी और नर्सरी सालाना लगभग 6 लाख रुपए कमाई हो रही."
कमाई के साथ बढ़े संसाधन
उषा रावत के परिवार में आर्थिक सुधार होने के कारण धीरे-धीरे संसाधन भी बढ़ने लगे. उषा ने अपने पति के लिए एक पुराना ट्रेक्टर भी खरीदा. इसका उपयोग खेत में होने से काम आसान हो गया.
Ajeevika Mission के District Manager Rajesh Upadhyay कहते हैं-"छोटे से गांव निकोड़ी का यह स्वयं सहायता समूह आदर्श बन गया.उषा रावत ने लगातार लोन सुविधा का उपयोग कर समय पर किश्ते भी उतारीं.dairy project से आय बढ़ी."
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रावत परिवार के मुखिया महेश ने खेत के अलावा डेयरी में भी समय देना शुरू कर दिया.
कमाई अच्छी होने से उषा रावत के बच्चे चिनोर में कॉलेज जाने लगे. वह बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहती है.
Ajeevika Mission के DPM Veent Gupta कहते हैं- "जिले में कई समूह लगातार बेहतर काम कर रहे.कुछ समूह सदस्यों ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी जगह बनाई है.उनके द्वारा तैयार प्रोडक्ट्स और बिज़नेस को नै पहचान मिली.और महिलाएं lakhapti didi की श्रेणी में शामिल हो रहीं हैं."