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प्रदेश में समूह की महिलाएं अपने घरों में दुकान संचालित करने लगीं -Image :Ravivar
नरसिंहपुर ज़िले के छोटे से गांव चावरपाठा की महिलाओं की नियति ही मजदूरी और मवेशी चरण था.कुछ महिलाएं आगे आईं और self help group से जुड़ कर खुद की दुकानों की मालकिन बन गई.
ये दिलचस्प कहानियां उन महिलाओं की जिन्होंने कम पढ़ाई के बाद भी प्रबंधन सीख लिया.
जनरल स्टोर खोल ख़ास बनी गांव की दीदी
Narsinghpur ज़िले के गांव Chawarpatha की बेटी बाई कोल कहती है- "पति बकरी चराते हैं.इतनी इनकम नहीं होती थी.SHG से जुड़ कर चंद्रघंटा समूह बनाया.मैं मजदूरी करती थी.समूह की मदद से बचत शुरू की और एक लाख रुपए का लोन लिया.मैंने घर पर ही जनरल स्टोर शुरू किया और स्टेशनरी का सामान बेचना शुरू किया.धीरे धीरे मेरी स्थिति अच्छी होने लगी. समूह के अधिकारियों ने मुझे Bank Sakhi की ट्रेनिंग दिलवाई."
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बेटी बाई की कमाई धीरे धीरे डेढ़ लाख रुपए साल तक पहुंच गई.बनिक सखी और जनरल स्टोर की वजह से कोल दीदी गांव की पहचान बन कर ख़ास दीदी हो गई.
भागवती ने मेहनत से बदला खुद का भाग्य
चावरपाठा गांव की ही भागवतीबाई ने अपनी मेहनत से अपना भाग्य बदल लिया.
भागवती बाई बताती है-"मैं पहले मवेशी चराकर परिवार का पेट पालन कर रही थी.self help group से जुड़ी और Ekta SHG बनाया.मैंने 20 हज़ार रुपए लोन लेकर घर पर ही मनिहारी (कटलरी,चूड़ी-श्रृंगार आदि सामान) की दुकान खोल ली.50 हज़ार रुपए लेकर मैंने दुकान में और सामान बढ़ा लिया.मेरी कमाई अच्छी होने लगी."
नरसिंहपुर ज़िले में Ajeevika Mission के DM Jwala Karosiya कहते हैं-"जिले में SHG से जुड़ी महिलाएं लगातार नवाचार कर रहीं हैं.CCL से मिली राशि का उपयोग कर व्यापार और कमाई बढ़ाई.इससे आत्मविश्वास बढ़ा."
ज़िले की DPM Meena Parte भी लगातार समूह सदस्यों से मिलाकर उनका हौसला बढ़ा रहीं जिससे ज्यादा से ज्यादा महिलाएं Lakhapti Didi बन सकें.