आत्मनिर्भर बन पति को दिया ई-रिक्शा उपहार

किसी समय अपने पति के साथ अलग-अलग राज्यों में मजदूरी के लिए भटकने वाली एक महिला का जीवन पूरी तरह बदल गया. SHG से जुड़कर इतनी मेहनत की, कि मजदूरी को विवश अपने पति को रिक्शा उपहार कर मिसाल कायम कर दी.

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झारखंड के शामपुर गांव में रुथ मालतो अपने पति के साथ (Image Credits: Jagarn)  

झारखंड (Jharkhand) के हिरणपुर ब्लॉक अंतर्गत डांगापाड़ा पंचायत के शामपुर (Shampur) गांव की रूथ मालतो (Ruth Malto)  की यह कहानी है. अपने बल पर मेहनत की और आज आत्मनिर्भर हो गई.

मेहनत कर मजदूरी से मिला छुटकारा 

झाखंड (Jharkhand) के शामपुर (Shampur)गांव की रूथ मालतो अक्सर मजदूरी के लिए अपने पति के साथ काम की तलाश में अलग अलग राज्य में भटकती. कुछ समय बाद वह जब लौटी तो गांव में आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) से जुड़ गई.

 रूथ मालतो बताती है -"शुरू में तो पुणउजे आजीविका  सखी मंडल (Sakhi Mandal)सदस्य बनकर भी समूह को ज्यादा टाइम नहीं दिया. मजदूरी के लिए चली गई. लेकिन जल्दी ही मैंने  बकरी पालन का काम शुरू किया.इससे थोड़ी कमाई शुरू हुई. फिर इसी में मन लग गया.धीरे-धीरे 50 हजार रुपए इकट्ठे हो गए. सखी मंडल (Sakhi Mandal)से मैंने 80 हजार रुपए का लोन लेकर अपनी शादी की सालगिरह पर अपने बेरोजगार पति आसनाथ पहाड़िया को ई-रिक्शा  दिलवा दिया. साथ ही उनको भी आत्मनिर्भर बना दिया."  

कोरोना में खर्च हो गई पूंजी 

अपनी आत्मनिर्भरता के लिए मिसाल बनी रूथ मालतो और उसके पति आसनदास पहाड़िया आगे बताते हैं- "कोरोना काल में थोड़ी बहुत पूंजी भी खर्च हो गई. हमारे पास कुछ नहीं बचा. स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) से जुड़कर ज़िंदगी बदल गई. अब हमारी कमाई लगभग 25 से 30 हजार रुपए महीना हो गई. बच्चे भी स्कूल जाने लगे."



रुथ मालतो को देख कर गांव की कई महिलाएं भी बकरीपालन और दूसरे काम शुरू कर चुकीं हैं.

आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के अधिकारियों का कहना है कि रुथ मालतो सहित दूसरी महिलाओं को लगतार प्रोत्साहित किया जा रहा है.     

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