SHG की महिलाओं के लिए ऋण माफ़ी
पुरे देश में यह बात साफ है की केंद्र और राज्य सरकारें , ग्रामीण महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए बहुत प्रयास कर रही है . सरकार का मानना है कि ग्रामीण क्षेत्र, खासकर ग्रामीण महिलाएं जब आगे बढ़ेंगी तभी देश की समामाजिक और आर्थिक तरक्की मुमकिन है. इसीलिए सरकार हर ग्रामीण महिला को स्वयं सहायता समूह (SHG) से जुड़ने पर ज़ोर देती है. आज 8.5 करोड़ से अधिक महिलाएं SHGs से जुड़कर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहीं है. महिलाएं सरकार और बैंको द्वारा दिए गए ऋण के सहारे अपना बिज़नेस शुरू कर अच्छी आमदनी कमाने लगती है.
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हाल ही में कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पास कुछ महिलाएं पहुंची और मुख्यमंत्री को अपना वादा याद दिलाया. सिद्धारमैया ने अपने चुनाव प्रचार में इन महिलाओं से वादा किया था कि उनका ऋण माफ़ किया जाएगा. महिलाओं ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर उनसे आग्रह किया कि वे कोलार जिले के वेमागल में ग्रामीण महिलाओं के ऋण माफ करने के अपने चुनावी वादे को पूरा करें. इसी वादे के बलबूते पर कर्नाटक के Self Help Group की महिलाओं ने डिस्ट्रक्ट कॉपरेटिव सेंट्रल बैंक (DCC banks) को किश्त भरने से इंकार कर दिया.
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DCC बैंक का कहना है- "महिलाओं पर कितना कर्ज है इसके सही आंकड़ें अभी नहीं दिए जा सकते क्योंकि महिलाएं बहुत से स्त्रोतों से लोन लेती है, जैसे- सरकारी बैंक, विभिन्न जिलों में जिला केंद्रीय बैंक, माइक्रो फाइनेंस कंपनियां और श्री क्षेत्र धर्मस्थल ग्रामीण विकास जैसे गैर सरकारी संगठन, आदि."
ग्रामीण महिलाओं द्वारा उधार लेने की इस प्रोसेस की शुरुआत 90 के दशक में हुई. महिलाओं के स्वयं सहायता समूह को यह लोन्स देना शुरू किया कुछ NGOs ने. ये समूह साप्ताहिक बैठकें करते और सदस्यों को छोटे ऋण लेने में सक्षम बनाने के लिए अपनी बचत को एक सामान्य खाता तैयार करते.
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बाद में, गैर सरकारी संगठनों ने समूहों को गारंटर के रूप में खड़े होकर बैंकों के साथ जुड़ने में सक्षम बनाया. ग्रामीण महिलाओं को बहुत बड़े ऋण बाजार के रूप में देखते हुए, माइक्रो फाइनेंस कंपनियां (MFCs) ने भी इन्हे ऋण देना शुरू कर दिए. इस तरह से बिना किसी लगाम के मैर्कोफाइनांस कम्पनीज़ इन महिलाओं को लोन देती और महिलाएं जिनका क्रेडिट्स स्कोर अच्छा होता वह अलग अलग ज़रिये से लोन उठा लेती.
आज इन महिलाओं पर ना जाने कितना ऋण चढ़ चुका है जिसे चुकाने का संघर्ष हर समय जारी रहता है. लेकिन जिस तरह के हालात है, मुश्किल लग रहा है कि यह महिलाएं कभी अपना कर्ज उतर पाएंगी. सिद्धारमैया ने इन महिलाओं को सुना और उनसे वादा किया कि अगले साल उनकी समस्याओं पर ध्यान देंगे.
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महिलाएं जो कर्ज चुकाने में समर्थ नहीं होती उनके पास सरकार की तरफ देखने के अलावा और कोई चारा नहीं होता. हाल ही में एक खबर सामने आई थी कि SHG का लोन ना चुका पाने के डर से एक महिला ने आत्महत्या तक का कदम उठाया. सरकारों को अपने वादे, खासकर समाज के अंतिम व्यक्ति को किये गए वादों को याद रखना चाहिए और उन्हें जल्द से जल्द क्रियान्वित करना चाहिए. आज कितनी ही SHG महिलाओं की आस सरकार की तरफ देख रही है और इस आस को पुरा होना चाहिए.