"विश्व स्तर पर, 78 % पुरुषों की तुलना में केवल 55 % महिलाएं श्रम बाज़ार का हिस्सा हैं. 72 देशों में महिलाओं को बैंक खाता खोलने या लोन लेने से रोक दिया जाता है. समान तरह के काम के लिए महिलाएं पुरुषों की तुलना में लगभग 50 % कम कमाती हैं. सिर्फ 25 % महिलाएं सरकार की टॉप पोसिशन्स का हिस्सा हैं."
ये फैक्ट्स बताते हुए इंटरनेशनल मोनेटरी फंड (International Monetary Fund) की पहली डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर (First Deputy Managing Director of the International Monetary Fund) गीता गोपीनाथ कहती है कि लैंगिक समानता (gender equality) लाने के लिए आर्थिक दृष्टिकोण (financial perspective) पर धयान देना ज़रूरी है.
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सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को दूर करने के लिए महिलाओं की भागीदारी ज़रूरी
भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ (Indian-American economist Gita Gopinath) बताती है कि विकासशील देशों (developing countries) में, अनौपचारिक क्षेत्र में महिलाओं का ज़्यादा प्रतिनिधित्व है जहां उन्हें कम वेतन, कम नौकरी की सुरक्षा और कम सामाजिक सुरक्षा जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
दुनिया भर के देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने के लिए जूझ रहे हैं - लगातार बढ़ती आबादी, व्यापार में आते बदलाव, सामाजिक अशांति, और मौसम से संबंधित आपदाओं का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. इन चुनौतियों से निपटने के लिए आर्थिक गतिविधियों (economic activities) में महिलाओं की भागीदारी ज़रूरी हो जाती है.
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Workforce में महिलाओं को जोड़ संभव होगी Global Economic Growth
Feminist Icon बन चुकी Gopinath, Harvard University के प्रसिद्ध अर्थशास्त्र विभाग का हिस्सा बनने वाली पहली भारतीय महिला हैं, और IMF में पहली महिला मुख्य अर्थशास्त्री भी. उनका मानना है कि वर्क फाॅर्स (work force) में महिलाओं को जोड़कर न सिर्फ महिला सशक्तिकरण (women empowerment) के, बल्कि वैश्विक आर्थिक विकास (global economic growth) के लक्ष्य को पूरा करने में भी मदद मिलेगी.
गोपीनाथ का मानना है कि लैंगिक समानता समावेशी और मजबूत वैश्विक आर्थिक विकास की ओर ले जा सकती है. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि श्रम बाजार में लैंगिक समानता राष्ट्रीय आय को बढ़ाने में लाभदायक साबित हो सकती है. अनुसंधान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यदि महिलाओं को कार्य बल का हिस्सा बनाया जाये तो राष्ट्रीय आय में काफी बढ़ोतरी हो सकेगी.
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वह एक सशक्त महिला के रूप में अपनी भूमिका को गंभीरता से लेती हैं, “नेतृत्व के पदों पर महिलाओं का होना बेहद ज़रूरी है. न केवल अर्थव्यवस्थाओं के लिए, बल्कि नीति बनाने में विचारों की विविधता लाने के लिए भी. इससे जूनियर पोसिशन्स पर महिलाओं को ऊपर उठने में भी मदद मिलती है. एक महिला नेता के रूप में, मैं उन बाधाओं से अवगत हूं जिनका उन्हें सामना करना पड़ता है, और मैं यह सुनिश्चित करूंगी कि उनकी सही नेटवर्क तक पहुंच हो."
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2 % से कम महिलाएं हैं बैंक CEO
गोपीनाथ ने ज़ोर देते हुए कहा कि महिलाओं के लिए बेहतर आर्थिक अवसर और समान वेतन न केवल लैंगिक असमानता को कम करता है, बल्कि आय असमानता को भी दूर करता है और सामाजिक बदलाव के साथ महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को भी पूरा करता है.
"महिला सशक्तीकरण एक अहम चैनल है जिसके ज़रिए हम मजबूत, अधिक समावेशी और अधिक लचीला विकास हासिल कर सकते हैं," गीता ने कहा. विश्व स्तर पर महिलाओं के पास बैंकों और फाइनेंशियल एजेंसियों में 20 % से कम बोर्ड सीटें हैं, और बैंक CEO की लिस्ट में महिलाओं की संख्या 2 % से कम है. इन आंकड़ों को बदलने के लिए financial inclusion की योजनों को रफ़्तार देने की ज़रुरत है.
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गीता गोपीनाथ एक ऐसी अर्थशास्त्री (economist) है, जिन्होंने अपने काम से पूरी दुनिया में एक अलग मक़ाम हासिल किया है. गीता ने हर महिला को कुछ कर गुज़रने का जज़्बा दिया है. महिलाओं के फाइनेंशियल इन्क्लूशन (financial inclusion), आर्थिक आज़ादी (financial freedom), और सशक्तिकरण (empowerment) के पहलुओं पर दुनिया का ध्यान खींचा है.
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