Feminist Activism का '100भाग्य' लिखता IPCW

साल 1924 था. पर्दा प्रथा आम थी और लड़कियां शिक्षा से कोसों दूर. ऐसे समय में इंद्रप्रस्थ कॉलेज (IPCW) ने लड़कियों के लिए पढ़ाई की अहमियत और जेंडर इक्वलिटी पर ज़ोर दिया.

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मिस्बाह
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Feminist Activism IPCW

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दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) के टॉप कॉलेजों में से एक  इंद्रप्रस्थ कॉलेज फॉर वीमेन (Indraprastha College for Women) आने वाले साल में 100 साल पूरे करने जा रहा है. ये 100 साल सिर्फ इस कॉलेज की शुरुआत का नहीं, बल्कि फेमिनिज़्म, एक्टिविज़्म, और क्रान्ति का जश्न है (Feminist activism at IPCW).

Indrapasth College ने 1924 में महिला शिक्षा का लिखा नया अध्याय 

साल 1924 था. पर्दा प्रथा आम थी और लड़कियां शिक्षा से कोसों दूर. ऐसे समय में इंद्रप्रस्थ कॉलेज ने लड़कियों के लिए पढ़ाई की अहमियत और जेंडर इक्वलिटी (gender equality) पर ज़ोर दिया. IPCW में पढ़ रहीं छात्राओं की प्रगतिशील सोच का एक असाधारण उदाहरण उस समय पेश किया जब 1950 के दशक में स्विमिंग पूल की मांग की गई. 

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इस मांग ने अधिकारियों को चकित कर दिया. जब छात्राओं को कोई मदद न मिली, तो उन्होंने कमान अपने हाथ में ली और श्रमदान शुरू किया. 1956 में विश्वविद्यालय ने वित्तीय सहायता इस शर्त पर दी कि श्रम छात्राओं द्वारा प्रदान किया जाएगा. 

साहित्य अकादमी विजेता क़ुर्रतुलऐन हैदर ने IPCW से की थी पढ़ाई पूरी 

माता-पिता द्वारा पुरुष शिक्षकों का विरोध किया गया. पर कुछ समय बाद, प्रोफेसर राम देव और पंडित नंद किशोर फैकल्टी का हिस्सा बनें. 1930 के दशक में, मुस्लिम महिलाओं ने प्रवेश लेना शुरू किया. कॉलेज में पहली मुस्लिम छात्रा नवाब सरबुलंद जंग की बेटी तहजीब सरबुलंद जंग थीं. 1941 में उर्दू उपन्यासकार क़ुर्रतुलऐन हैदर ने दाखिला लिया, जिन्होंने बाद में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता.

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अंग्रेजी साहित्य लेक्चरर जनक कुमारी जुत्शी ने 1937 में टॉर्च बियरर सोसाइटी के नाम से एनुअल हैंड रिटन मैगज़ीन शुरू की. आरोह के नाम से प्रकाशित होने वाली ये मैगज़ीन आज युवा महिलाओं के प्रगतिशील नज़रिये को जगह दे रही है (female teachers advocating gender equality).

स्वंत्रता संग्राम में IPCW की छात्राओं ने दिया था योगदान 

ब्रिटिश सरकार की नीतियों का IPCW की छात्राओं ने जमकर विरोध किया. स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया. शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों को घेर दिल्ली की गलियों में जुलूस निकाले. 1937 में कॉलेज में वाइसरीन डोरेन लिनलिथगो की यात्रा का बहिष्कार किया. 1933-34 में, महिलाओं ने ज़िन्निया गश्ती दल का गठन किया और ब्रिटिश झंडे को सलामी देने और नारा लगाने से इनकार कर दिया (female freedom fighters). ब्रिटिश सरकार के विरोध में युवा महिलाओं का समर्थन जुटाने के लिए छात्राएं ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल हो गई. 

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भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अरुणा आसफ़ अली का समर्थन करने वाली कॉलेज की युवतियों को ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के लिए जेल भेज दिया गया. 1942 के ओलंपिक की नेटबॉल प्रतियोगिता में इंद्रप्रस्थ कॉलेज की महिला टीम रनर-आप रही. लेकिन, भारत में राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी की खबर ने उनकी जीत के उत्साह पर पानी फेर दिया. अभिनंदन समारोह में वाइसरीन लेडी लिनलिथगो के सामने छात्राओं ने ब्रिटिश विरोधी नारे लगाए

Gender Equality की वकालत है IPCW विरासत का अहम हिस्सा 

हॉस्टल कर्फ्यू से जुड़े असमान नियम हों, सड़कों पर सेफ्टी की बात, या महिला अधिकार का मुद्दा, इंद्रप्रस्थ कॉलेज की लड़कियां आवाज़ उठाने से कभी पीछे नहीं हटती. बदलते वक़्त के साथ लड़कियों की चुनौतियां भी बदली, पर न बदला तो IPCW की छात्राओं का एक्टिविज़्म.

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इंद्रप्रस्थ कॉलेज ने महिला शिक्षा को बढ़ावा देने, महिला आंदोलन का समर्थन करने, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में युवा लड़कियों की भूमिका पहचानने और फीमेल लीडरशिप को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाई है. इस विरासत ने समाज में यह संदेश दिया कि शिक्षा वह सीढ़ी है जो एक लड़की को सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक सफलता की मंज़िल पर ले जाती है.

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