लम्बानी आर्ट- भारत के हेरिटेज का एक और नाम
"हर स्टीच के साथ कोई न कोई कहानी भी बनी जाती है, क्योंकि कढ़ाई ही हमारी भाषा है और हमारा इतिहास भी. हमारी अगली पीढ़ी तक हमें यह विरासत पहुंचानी है." यह शब्द है, 53 वर्षीय गौरी के जो संदुर लम्बानी कम्युनिटी में कशीदाकारी कर रही है. लंबानी कढ़ाई, जिसे "खिलन" और "टून" के नाम से भी जाना जाता है, रंगों, पैटर्न और प्रतीकों की एक सिम्फनी है जो प्राचीन कहानियां और लेजेंड्स को सामने रख रही है.
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लम्बानी आर्ट है डेप्लीट होने की कगार पर
यह कर्नाटक की एक बहुत पुरानी और और सुन्दर आर्ट कौशल वाली कम्युनिटी है, जो अपने ट्रेडिशन को पूरी दुनिया तक पहुंचाना चाह रहे है. लेकिन कुछ समय से ये महिलाएं थोड़ी असमंजस में है. अपनी कला को धीरे धीरे ख़त्म होता देख वे परेशान हो रही है. लम्बानी कला, जो कभी पूरे कर्नाटक के हृदय में बढ़ रही थी, फल-फूल रही थी, अपनी परंपरा को थामे हुई थी, वह आज पहचान खोती जा रही है.
लम्बानी कम्युनिटी में 400 से ज़्यादा महिलाएं इस कला को संजोये रखने का काम कर रहीं है. विचार करने वाली बात यह है कि इन महिलाओं में से 300 से ज़्यादा 50 साल के ऊपर है. रुक्मिणी, जो की एक आर्टिस्ट है, ने बताया कि कम पैसे और लंबा काम होने के कारण आजकल की लड़कियां लम्बानी आर्ट में से अपनी रूचि कम करती जा रही है.
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लम्बानी आर्ट वाली महिलाओं ने बनाए SHGs
इस कम्युनिटी की हर महिला अपने कौशल को एवरग्रीन बनाए रखने के लिए हर प्रयास कर रहीं है. उन्होंने स्वयं सहायता समूह (SHG) बना रखे है, और वे साथ मिलकर इस समस्या से लड़ने के लिए तैयार है. Self Help Group की एक सदस्या शांता बाई ने कहा- “लोग विदेशी ब्रांड्स से उम्मीद रखे हुए है. लेकिन परेशानी यह है की हमारी कला का मूल्य ज़्यादा नहीं हो पा रहा. भारत में ही देखे तो इस कला के बारे में ज़्यादा लोगों को नहीं पता जी कारण हमें इतनी ऑर्डर्स ही नहीं मिल पाते." जिन नैचरल रेसोर्सेज़ पर वे निर्भर है, वो भी धीरे धीरे ख़त्म होते जा रहे है.
हालांकि, उन्होंने अपने शिल्प को बचाए रखने और उसकी उम्र को बढ़ाने के लिए वैकल्पिक सामग्रियों की खोज शुरू कर दी है. कुछ लोग जैविक रंगों को अपना रहे हैं और रिसाइकिल कर सकने वाले उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे है, जबकि अन्य नई सिलाई तकनीकों का प्रयोग कर रहे हैं जिनके लिए कम संसाधनों की आवश्यकता होती है.
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इस्तेमाल कर रहे रिसाइकिलिंग वाले प्रोडक्ट्स
पहले महिलाएं लम्बानी आर्ट बनाते वक़्त कुछ ऐसे फूलों का इस्तेमाल करती थी, जिनसे बहुत खूबसूरत रंग रेशे पर उतारते थे. लेकिन आज हाल यह है कि वह फूल बहुत मुश्किल से मिल रहे है. यानी देखा जाए, तो एक अलार्मिंग परिस्थिति तैयार हो गयी है. एक आर्ट फॉर्म का ख़त्म हो जाना किसी भी सूरत में सामान्य बात नहीं हो सकती. भारत का कल्चर और हेरिटेज इतना प्रसिद्द इसीलिए ही है, क्योंकि यहाँ पर हर शहर की अपनी कलाकारियां है. भारत की एक आर्ट फॉर्म ख़त्म हो जाए, यह सिर्फ उस कम्युनिटी ही नहीं बल्कि हर कला प्रेमी के लिए शर्म की बात होगी.
भारत सरकार को इस मामले में बहुत तेज़ी से कदम उठाने की ज़रूरत है क्योंकि अगर यह कम्युनिटी ख़त्म हुई तो देश के हेरिटेज के लिए यह बिल्कुल अच्छा नहीं होगा. लम्बानी कम्युनिटी के SHGs को सहायता प्रदान करना कर्नाटक और केंद्र सरकार की प्रार्थमिकता होनी चाहिए. ऐसी कला का प्रदर्शन हर इंटरनैश्नल और नेश्नल हाट और मेले में होना चाहिए ताकि लोगों तक इसकी सुंदरता पहुंचे.