श्राद्ध के दिनों में गए जाने वाले इन गीतों में बेटियों (Daugther) के महत्व को बताया गया. बेटियों (Daugther) के सम्मान और उन्हें बचाने का प्रचार छोटी-छोटी बेटियां खुद भी कर रहीं. श्राद्ध के सौलह दिनों में यह पर्व भी मनाया जाता है.
बाल विवाह रोकने की मासूम मनुहार
संजा लोकपर्व (Sanja LokParv) के गीतों का संस्कृति प्रेमी और गीतकारों ने सदियों से गए जा रहे इन गीतों को गहराई से अध्ययन किया. मालवी संस्कृति को सहेजने और लोकपर्वों पर शोध कर रहीं उज्जैन (Ujjain) निवासी माया बदेका (Maya Badeka) कहती हैं - "इन गीतों को और अधिक संरक्षित करने की जरूरत है. इन गीतों के लिखे शब्दों को समझें तो देख सकते हैं किस तरह भावों को व्यक्त किया गया."
इन गीतों में जैसे
'नानी सी गाड़ी लुड़कती जाए, जिनमें बैठ्या संजा बाई,
घाघरो चमकावती जाए, चुडलो चमकावती जाए, बिछिया बजावती जाए...'
'घर पर बैठी चिड़कली उड़ावता क्यूं नी दादाजी,
मगरी बैठ्यो कागलो उड़ावता क्यूं नी दादाजी,
संजा चली सासरे मणावता क्यूं नी दादाजी...'
जैसे गीतों में बेटी (Daugther) हसरत और मनुहार के साथ जिद दिखाई देती है। साथ ही बेटियां बाल विवाह (Child Marriage) रोकने की ओर भी इशारा करती हैं.
कई पुरस्कारों से सम्मानित बदेका बताती है- "यह पर्व भगवान शिव-पार्वती की आराधना का है. बाल विवाह से घबराई बेटियां सदैव शिव को पूज कर उन्हें मनाती. राजस्थान में किवदंती है कि राजा की बेटी संजा की ससुराल में बहुत काम उम्र में अकाल मौत हुई. तभी से श्राद्ध के दिनों में संजा को पूजा जाता है. सही उम्र और योग्य वर की मिन्नतें बेटियां करती हैं."
माया बदेका अपने निवास उज्जैन में संजा बनाती हुईं (Images: Ravivar Vichar)
गोबर से उकेरते हैं आकृति
देश के उत्तरी भाग खासकर राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा और ब्रज में यह परंपरा बरसों से चली आ रही. प्रदेश के मालवा-निमाड़ अंचल में ये जोर-शोर से मनाया जाता है. देवी अहिल्या विश्व विद्यालय इंदौर, (DAVV Indore) के पत्रकारिता विभाग के हेड डॉ. सोनाली सिंह नरगुंदे कहती हैं- "इस पर्व का अपना महत्व है. गांव में आज भी दीवारों पर बच्चियां गोबर से रोज़ नई आकृति उकेरती है.उसको अलग-अलग चमकीली पन्नियों से सजा कर फूलों से आकर्षक बनाया जाता है. इसे कला को सहेजने की जरूरत है."
खरगोन के वाग्देवी विद्यापीठ स्कूल में छात्राएं संजा बनती हुईं (Image Credits: Suraj Pal)
पश्चिम निमाड़ (West Nimar) के खरगोन (Khargone) मुख्यालय पर वाग्देवी विद्यापीठ स्कूल के संचालक जयेश परसाई कहते हैं- "छात्राओं को लोकपर्व और संस्कृति से जोड़े रखने के लिए संजा फूली की आकृति उकेरने के लिए प्रेरित किया."
मालवी बोली को संरक्षित करने के मिशन में जुटी हेमलता शर्मा भोली बेन कहती है- "यह दुर्भाग्य है कि आधुनिकरण के नाम पर हमारे लोक पर्व और संस्कृतियां विलुप्त हों रहीं. श्राद्ध के दिनों में मनाया जाने वाला यह पर्व विलुप्ति की कगार पर है. ग्रामीण इलाकों में ये झलक दिखाई देती है. आज भी गीत गाकर लोक आकृतियां उकेरी जा रहीं यह सुखद है. लेकिन इस भारतीय पौराणिक संस्कृति को बचाने का सामूहिक दायित्व है."
संजा फूली की आकृति (Image Credits: Suraj Pal)
मालवा की लोक संस्कृति के मर्मज्ञ नरहरि पटेल कहते हैं- "लोक संस्कृति कभी नारी के अपमान की बात नहीं करती. वह तो हमारे संस्कारों का अखंड स्त्रोत है. संजा के गीतों में भी यह भावना सर्वोपरि है."
इन गीतों और लोक पर्व को ही आधुनिक रूप देकर लाड़ली बहना, नारी सम्मान और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं को तैयार किया. "रविवार विचार" का नज़रिया भी यही है कि महिला सशक्तिकरण को लेकर जहां भी योजनाओं का सही लाभ मिला वहां महिलाओं ने साबित कर दिया कि वे किसी से काम नहीं. और इसीलिए "रविवार विचार" का मिशन बेटियों के सम्मान, योग्यता और हुनर को समाज के सामने लाना है. संस्कृति को संरक्षित करना है.