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प्रकृति ने पुरुष और महिलाओं की शारीरिक बनावट में अंतर रखा. पौरुष प्रधान धारणा को बदलते परिवेश में भी महिलाएं दबे-छुपे स्वीकारोक्ति देती रही. पिछले कुछ दशक से ये अनुभवी और संघर्ष से तपी हुई मां जरूर अपनी बेटियों को नए सिरे से तराश रहीं.
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